वैदिक पेरेंटिंग

वैदिक पेरेंटिंग क्या है ?
वैदिक पेरेंटिंग वेद, उपनिषद, शास्त्र, रामायण, महाभारत, जैसे ग्रंथ एवं आधुनिक मनोविज्ञान के समन्वय द्वारा निर्मित सूत्र है। वैदिक पेरेंटिंग माता-पिता संतान के प्रति योग्य व्यवहार कर सके इसलिए योग्य उदाहरण के साथ समझाया जाने वाला विज्ञान और सिखाने की कला है।
वैदिक पेरेंटिंग की आवश्यकता क्या है ?
आज भारत में माता-पिता तथा बच्चों के बीच के संबंध तनावपूर्ण हो रहे है। नेशनल क्राइम रिकॉर्ड संस्था के सर्वे के अनुसार प्रतिदिन २१७ बच्चे (भारत में) घर छोड़कर चले जाते है और ३१ बच्चे आत्महत्या कर लेते है। इसका अर्थ ऐसा नहीं है की माता-पिता बच्चों के लिए कुछ भी नहीं करते वे बहुत कुछ करते हैं, परन्तु योग्य पद्धति से नहीं करते, परिणाम स्वरूप भारत में प्रतिदिन एक नया वृद्धाश्रम खुलता है।
वैदिक पेरेंटिंग के ज्ञान का लुप्त होना…
यदि यह समस्या भारत में आरंभ से ही होती तो यह सब सोचने की आवश्यकता नहीं है, परन्तु ऐसा नहीं है, भारत के इतिहास में कोई भी बच्चा अपने घर से भागता नहीं था और कोई भी व्यक्ति आत्महत्या नहीं करता था। परिवार व्यवस्था सक्षम होने का मुख्य कारण वैदिक पेरेंन्टिंग का अमूल्य ज्ञान था, जो भारत के प्राचीन गुरुकुल से संलग्न था। गुरुकुल नष्ट होने से वह ज्ञान भी नष्ट हुआ यह भारत का सबसे बड़ा दुर्भाग्य हैं।
गुरुवर्य श्री विश्वनाथ जी द्वारा पुनरोद्धार – सूत्र-उपसूत्र द्वारा युगानुकूल पेरेंटिंग
मध्यकाल में लुप्त हुए इस ज्ञान को विश्वनाथ गुरुजी ने वेद, उपनिषद, रामायण, महाभारत जैसे ग्रंथों का सूक्ष्म अभ्यास करके, आधुनिक मनोविज्ञान को ध्यान में रखते हुए वैदिक पेरेंटिंग के इस ज्ञान को संस्कृत के सूत्र-उपसूत्र विभाजित किया। वैदिक पेरेंन्टिंग विचार के जीर्णोद्धार के लिए पूज्य गुरुवर्य ने वेदादि शास्त्रों में से ऐसे सूत्र अन्वेषित किए जो काल की गर्त में चले गए थे। इन सूत्रों का संकलन करके सारस्वरूप उन्होंने संस्कृत में सूत्र एवं उपसूत्र की रचना की।
संस्कृति आर्य गुरुकुलम् द्वारा प्रचार
वैदिक पेरेंटिंग के सूत्रों का जीर्णोद्धार करके पूज्य गुरुजी ने संस्कृति आर्य गुरुकुलम् के द्वारा उसे घर-घर तक पहुँचाने का संकल्प किया। सामान्य जन तक पहुँचने के लिए अनेक शिबिर, कार्यशालाओं एवं प्रशिक्षण का आयोजन किया गया। वैदिक पेरेंटिंग से अनेक लोगों ने अपने बच्चों को सही दिशा बताई। अनेक बच्चे वेद, उपनिषद, गीता जैसे ग्रंथ स्वेच्छा से पढ़ने के लिए गुरुकुल व्यवस्था को समर्पित हुए। परिणाम स्वरुप वाराणसी में गुरुकुल व्यवस्था की पुनः स्थापना का श्रेय “संस्कृति आर्य गुरुकुलम्” को मिला। उपरांत उस से अनेक गुरुकुल तथा संस्थाएं भी सांस्कृतिक ज्ञान से नव पल्लवित हुई।
वैदिक पेरेंटिंग के ज्ञान से बालकों की समस्या का समाधान होता है?
बालकों के साथ उचित व्यवहार होता है इसलिए उनके मन में हमारे लिए किसी भी प्रकार की ग्रंथि नहीं रहती है। रामायण, महाभारत के अनेक उदाहरणों के द्वारा समझ दी जाती है, इसलिए व्यवहार में लाना सरल है। वैदिक पेरेंटिंग के ज्ञान से बालकों की परवरिश की जाये तो जीवनभर उनके साथ संबंध सुदृढ़ रहते हैं। स्वास्थ्य सूत्र भी साथ में होने से बचपन से ही बच्चों को स्वास्थ्यप्रद आहार-विहार की समझ आ जाती है। अनेक प्रकार की गंभीर बीमारियों से हानिकारक दवाओं से तथा व्यसनों से बच्चों को बचपन से ही बचाया जा सकता है। बालक का निरीक्षण और परीक्षण हम ही करना सीखते हैं जिससे उसकी समस्या का हल भी तुरंत ही हो सकता है।

अन्य पेरेंटिंग मार्गदर्शन और वैदिक पेरेंटिंग मार्गदर्शन में क्या अंतर है ?
अन्य सभी पेरेंटिंग मार्गदर्शन में विदेशी – देशी, निजी मान्यताएँ, धारणाएँ और डेटा होते है उसमें जीवंत कुछ नहीं होता। वैदिक पेरेंटिंग जीवंत है क्योंकि वह जीवन पर आधारित है तथा पूर्ण व्यावहारिक है, निःस्पृह, निष्काम एवं जागृत प्रज्ञा वाले महर्षियों के वचनों का सार है। वैदिक पेरेंटिंग पंचकोश विज्ञान के विकास के आधार पर स्थित पूर्ण विज्ञान है, जिसका उपयोग भारत में हजारो वर्षों से एक महाविज्ञान के रूप में होता आया है।
संस्कृति आर्य गुरुकुलम् द्वारा शालाओं में वैदिक पेरेंटिंग
“संस्कृति आर्य गुरुकुलम्” द्वारा विशेष रूप से शाला तथा सामाजिक संस्थाओं के लिए पेरेंटिंग तथा TEACHER TRAINING के विविध कार्यक्रम, बाल विकास के विविध आयाम। “संस्कृति आर्य गुरुकुलम्” द्वारा स्थान-स्थान पर समयांतर पर आयोजित ३ घंटे का निःशुल्क सेमीनार, १ दिवसीय वर्कशॉप, ३ दिवसीय वैदिक पेरेंटिंग शिविर। वैदिक वार्ताकथन का माता-पिता एवं शिक्षकों के लिए वर्कशॉप, विविध शाला में भगवद् गीता – संस्कृत भाषा का प्रशिक्षण। शाला तथा सामाजिक संस्थाओं में प्रति मास पुष्य नक्षत्र पर मंत्रौषधि सुवर्णप्राशन संस्कार।
संस्कृति आर्य गुरुकुलम् की विविध प्रवृतियाँ
बालक एवं बालिकाओं दोनों के लिए निवासी शिक्षा व्यवस्था ७ वर्ष का दर्शनशास्त्र, वेद-उपनिषद, आयुर्वेद – पंचगव्य अभ्यासक्रम। दिव्य आत्मा अवतरण के लिए गर्भसंस्कार पुत्रेष्टि यज्ञ एवं चिकित्सा, ० से १५ वर्ष तक के बालकों के स्वास्थ्य लाभ हेतु निःशुल्क मन्त्रौषधि सुवर्णप्राशन केन्द्र (भारतभर में चल रहे ५०० से ज्यादा केन्द्र)। ३ से ५ वर्ष के बालकों के लिए संस्कृति आर्य बाल शाला (आधुनिक PRE-SCHOOL का सांस्कृतिक वैदिक विकल्प)।
वैदिक पेरेन्टिंग अन्तर्गत वैदिक संस्कार
पूज्य गुरुवर्य श्री विश्वनाथजी ने लुप्त हुई काश्यप संहिता का संशोधन करके उसके खण्डित पाठों की पूर्ति की। काश्यप संहिता में बताये गये सभी संस्कार बालकों को कराए जाएँ तो शारीरिक, मानसिक एवं बौद्धिक रुप से स्वस्थ बनता है।
गुरुवर्य श्री विश्वनाथजी द्वारा पुनरोद्धार (सूत्र- उपसूत्र द्वारा युगानुकुल पेरेन्टिंग)
बालक के जन्म के समय, जन्म पश्चात् विविध संस्कार होते हैं, जिसकी जानकारी इस प्रकार है:-
- बालकों के जन्म समय पर नालच्छेदन, जातकर्म, सुवर्णप्राशनम्
- जन्म के छे दिन पश्चात षष्ठी पूजन (षष्ठीदेवी का विविध पूजन)
- जन्म के दसवें दिन नामकरण (नाम रखना)
- जन्म के एक मास बाद सूर्य-चन्द्र दर्शन संस्कार (बच्चों को ४ मास तक ध्वनि एवं प्रकाश से बचाना होता है।)
- चौथे मास पर निष्क्रमण (घर से बहार निकालने का संस्कार ४ माह के बालक को बाहर की वस्तुएँ एवं दुनिया से संसर्ग कराना) संस्कार है।
- ५ मास के बालक के लिए फलप्राशन संस्कार एवं बिठाना शुरू करें।
- छह मास के बालक के लिए अन्नप्राशन संस्कार है।
- कर्णवेध संस्कार, जब बालक 1 वर्ष का हो जाए तत्पश्चात करते हैं। कर्णवेध का सही समय सर्दियों में या फागुन एवं चैत्र माह में है ।
- बालक के लिए चोल संस्कार महत्व का है, जो बालक के तीसरे वर्ष में किया जाता है । लेकिन यह संस्कार में मुंडन के लिए ज्ञाति के अपने नियम होते हैं।
यह सारे संस्कार कश्यप संहिता ग्रंथ के अनुसार पूरे विधि-विधान के साथ भारत में सिर्फ संस्कृति आर्य गुरुकुलम् में निःशुल्क किए जाते हैं।

पंचकोश क्या है ?
पंचकोश का अर्थ है, पांच कोशिकाओं का एक समूह जिन्हें पाँच तत्व कहा जाता है। उन पांच कोशिकाओं का समुच्चय पंचकोश है।
अन्नमयकोश, प्राणमयकोश, आनंदमयकोश, मनोमयकोश, विज्ञानमयकोश
पंचकोश का संबंध शरीर, प्राण, मन, बुद्धि और चित्त (चेतना) के साथ है।
पंचगुण इस प्रकार है: अस्तित्व, अस्मिता, भावना, ज्ञान और आनंद।
पंचकोश विकसित कब होते हैं ?
पंचकोश का विज्ञान शास्त्रों के गहन अभ्यास एवं विश्लेषण के बाद पूज्य श्री विश्वनाथ गुरुजी ने जाँचा और अनेक प्रयोगों के बाद सिद्ध किया है ।
- अन्नमयकोश : ० से ५ वर्ष तक
- प्राणमयकोश : ६ से १० वर्ष तक
- मनोमयकोश : ११ से १५ वर्ष तक
- विज्ञानमयकोश : १६ से २० वर्ष तक
- आनंदमयकोश : २१ से २५ वर्ष तक
पंचकोश विकास के विज्ञान पर आधारित पेरेन्टिंग
पंचकोश विकास के विज्ञान पर आधारित पेरेन्टिंग में पाँच महत्व के विषय का अभ्यास होता है।
- खानपान और विहार पर केन्द्रित पेरेन्टिंग: संस्कारपर्व
- व्यवहार केन्द्रित पेरेन्टिंग: व्यवहारपर्व
- विचार केन्द्रित पेरेन्टिंग: विचारपर्व
- मैत्री केन्द्रित पेरेन्टिंग : मैत्रीपर्व
- आदर्श केन्द्रित पेरेन्टिंग : पूर्णपर्व