“मंत्रौषधि सुवर्णप्राशनम्”
मंत्रौषधि सुवर्णप्राशन क्या है ?
- मंत्रौषधि सुवर्णप्राशन काश्यप संहिता में वर्णन के अनुसार मंत्रोच्चार सहित सुवर्ण, मध, वचा, ब्राह्मी, शंखपुष्पी जैसी औषधियों से निर्मित हुआ “इम्यून टॉनिक” है ।
- जो बालक की रोगप्रतिकारक शक्ति को मजबूती प्रदान कर के एक स्वस्थ तासीर का निर्माण करता है ।
- जिससे कुपोषण, दुबलापन, अजीर्ण, कब्ज, कृमि जैसी पाचन संबंधी विकृतियां दूर होती है ।
- पुरानी सर्दी-खांसी कफ, जुकाम, बुखार एवं गले से संबंधित कई वायरल रोगों से रक्षण मिलता है ।
- चिड़चिड़ापन, गुस्सा, स्लो-लर्निंग, सिझोफेनिया जैसे मानसिक रोगों में बेहद लाभ प्राप्त होता है ।
- यह प्राचीन काल में इतना प्रचलित था की सभी बालकों को “सुवर्णप्राशन संस्कार” करवाया जाता था, किन्तु- समय के साथ-साथ मध्यकाल में ये लुप्त हो गया ।
३००० साल पुराना सुवर्णप्राशन का पुनरोद्धार
- मध्यकाल से लुप्त हुए सुवर्णप्राशन के पुनः जीर्णोद्धार के लिए पू. गुरुजी ने ३८ प्रकार के एक्सपेरिमेंट किये ।
- साथ-साथ पूज्य गुरुजी ने आयुर्वेद की प्राचीन संहिताओं का गहन (गहरा) अभ्यास भी किया ।
- अंतत: गुरुजी ने कई संशोधन के बाद ३००० साल पुरानी सुवर्णप्राशन निर्माण की शास्त्रोक्त विधि को पुनः खोज निकाली ।
सन १९७० में सुवर्णप्राशन अभियान की शुरुआत
- सन् १९७० में पूज्य गुरूजी ने निःशुल्क “मंत्रौषधि सुवर्णप्राशन अभियान” की शुरुआत की ।
- उसके बाद, उन्होंने २१ कार्यकर्ताओं को इस अभियान में जोड़कर वाराणसी के आसपास स्थित नगर व शहरों में प्रचार प्रसार शुरू किया ।
- इस कार्य से प्रेरित होकर डॉक्टर्स, प्राध्यापक, शिक्षक जैसे शिक्षित लोग भी कार्यकर्ता के रूप में इस अभियान से जुड़े ।
- फलस्वरूप, यह अभियान वाराणसी के आसपास के बहुत सारे गाँव, शहर एवं कस्बे तक पहुंचा ।
सन १९९० में राष्ट्रपति द्वारा सन्मान
- सन् १९८०-९० के दौरान केंद्र सरकार आधिकारिक रूप से बाल स्वास्थ्य संबंधी सर्वेक्षण किये गए ।
- जिस में चमत्कारिक रूप से वाराणसी आसपास के क्षेत्र में बाल रोगों का प्रमाण काफी कम देखने को मिला ।
- जिसके कारण की शोध में निकले केंद्र सरकार के अधिकारियों को मंत्रौषधि सुवर्णप्राशन के निःशुल्क केंद्र की जानकारी ज्ञात हुई ।
- २४ मार्च १९९० के दिन आर. वेंकटरमन द्वारा गुरुजी को “राष्ट्रपति पुरस्कार” प्रदान किया गया ।
- क्यों की, बाल स्वास्थ्य पर यह अभियान आज़ादी के बाद भारत के इतिहास का सर्वप्रथम एवं सबसे सफल अभियान था ।
सन २००३ में उप-राष्ट्रपति द्वारा सन्मान
- राष्ट्रपति अवार्ड के बाद, यह अभियान स्थानिक से ऊपर राष्ट्रीय स्तर का अभियान बना और १४ राज्यों में पहुंचा ।
- देखते ही देखते यह अभियान अंतर्गत पूरे देश में ३८२ केन्द्र शुरू हुए और लाखो बालकों तक मंत्रौषधि सुवर्णप्राशन पहुंचा ।
- परिणाम स्वरूप, बाल स्वास्थ्य का स्तर सुधरा एवं कुपोषित बालकों में भी चमत्कारिक परिणाम प्राप्त हुए ।
- इसी कारण, एक बार फिर से सन २००३ में उपराष्ट्रपति भैरोंसिंह शेखावत जी द्वारा पू. गुरूजी को सम्मान प्रदान किया गया ।
- गुरुजी द्वारा शुरू किया गया यह अभियान १९७० से आज भी अविरत – अस्खलित रूप से कार्यरत है ।
वर्तमान में मंत्रौषधि सुवर्णप्राशन अभियान
- वर्तमान में पूरे भारत भर के १८ राज्यों में सुवर्णप्राशन के ५४२ निःशुल्क केंद्र चल रहे है ।
- भारत में चल रहे इस अभियान का प्रचार-प्रसार बढ़कर वर्तमान में यह अमरिका, कनाडा, दुबई, क़तर, सिंगापुर एवं नैरोबी जैसे ७ देशो में भी पहुंचा है ।
- इस तरह वर्तमान में आचार्य मेहुलभाईजी की आगवानी में यह अभियान अब आंतरराष्ट्रीय बन गया है ।
- गुरुजी के इस अविरत प्रयास के कारण ०६ अगस्त २०२२ को लक्ष्मीकांत बाजपेई द्वारा राज्यसभा में सुवर्णप्राशन पर चर्चा की गई ।
मंत्रौषधि और अन्य सुवर्णप्राशनम् में अंतर क्या है?
मंत्रौषधि सुवर्णप्राशनम् १२ साल के अविरत शोध संशोधन और ३८ प्रकार के experiment के बाद निर्माण किया गया है ।
मंत्रौषधि सुवर्णप्राशनम् इतना सस्ता क्यों है ?
- पू. विश्वनाथ गुरुजी जिनकी वाराणसी में सिद्धेश्वर रसशाला फार्मेसी थी, उन्होंने अपने हाथों से बनाई हुई स्वर्ण भस्म को भारत के प्रत्येक बच्चे के स्वास्थ्य के लिए दान दिया उसी से सुवर्णप्राशनम् बनता है, इसलिए हम इसे राहत दर से दे सकते है ।
- मंत्रौषधि सुवर्णप्राशनम् शास्त्रोक्त मंत्रो से अभिमंत्रित कर के बनाया जाता है, जिससे चमत्कारिक कहे जाने वाले परिणाम प्राप्त हुए है एवं बच्चों के कष्ट साध्य एवं असाध्य रोगों में भी लाभ प्राप्त हुए है ।
- मंत्रौषधि सुवर्णप्राशनम् भारत का सबसे प्रथम – सक्षम और राष्ट्रपति एवं उपराष्ट्रपति पुरस्कार विजेता संस्था द्वारा निर्मित है ।
क्या मंत्रौषधि सुवर्णप्राशनम् प्रतिदिन पिलाना चाहिए ?
- मंत्रौषधि सुवर्णप्राशनम् प्रतिदिन पिलाना चाहिए और पुष्यनक्षत्र पर भी पिलाना चाहिए ।
- मंत्रौषधि सुवर्णप्राशनम् प्रतिदिन पिलाने से सुवर्ण की पर्याप्त मात्रा बच्चों के शरीर में जाती है, जिससे बच्चों की स्मरण शक्ति, और इम्यूनिटी बढ़ती है ।
बच्चों के अस्थमा, एलर्जी, डाउन सिंड्रोम या हृदय के छेद जैसी घातक बीमारियों में भी पूरा लाभ होता है ।
1975 में परीक्षण में यह विधि कुपोषित बच्चों के लिए अमृत समान प्रभावी मानी गई। डा. बाजपेयी ने बताया कि गोरखपुर के एक गांव में 800 बच्चों पर प्रयोग किया गया, जिनमें से 40 प्रतिशत की बीमारी दूर हुई। पीजीआई लखनऊ, सेंटर ऑफ बायोमेडिकल रिसर्च लखनऊ और केजीएमयू के डॉक्टरों और वैज्ञानिकों की देखरेख में शोध किया जो बेहद कारगर रहा।
शोध में क्या-क्या मिला ?
सुवर्णप्राशन की खुराक माहभर देने के बाद फिनायलैलेनाइन(फेनिल एलानिन) अनुपात में परिवर्तन देखा गया। टायरोसिन में वृद्धि दर्ज की गई जिसकी वजह से डोपामाइन मार्ग सक्रिय हुआ और इसी ने नॉरपेनेफ्रिन को भी सक्रिय किया जो कि न्यूरोट्रांसमीटर और हार्मोन के रूप में कार्य करता है।
नया सुवर्णप्राशन केंद्र खोलने के लिए व पुराना फिर से शुरु करने के लिए संपर्क करें : +91 814 014 0014