Description
आयुर्वेद के विभिन्न ग्रंथों में भोजन के बाद सेवनीय विविध पदार्थों का निरूपण बताया है। उसमें जायफल, जावंत्री, लोंग, इलाइची, यष्टिमधु इत्यादि पाचक रसवाली औषधियों नागरवेल के पान के साथ सेवन करने से अनेक लाभ प्राप्त होते है।
नागरवेल का पान वर्षों से भारतीय संस्कृति से जुड़ा है, प्राय: सभी पूजा में तथा भगवान को भोग लगाने में पान का उपयोग होता है। पान में पाचक स्त्राव बढाने का गुण है, साथ में पान में Antiseptic और Anti Bacterial Property होने के कारण घाव की चिकित्सा में भी पान का प्रयोग होता है।
उत्तम प्रकार के नागरवेल के पान को लेकर उसको सुखाकर प्राकृतिक गुलकंद, सौंफ, यष्टिमधु, जावंत्री, लोंग, इलाइची, त्रिफला इत्यादि का मिश्रण करके एक विशेष प्रकार का मुखवास बनाया है जिसका नाम नागरवेल पाचक मुखवास है।
लाभ :
- मंत्रौषधी पाचक मुखवास से मुख की दुर्गन्ध दूर होती है।
- पाचक रस को बढ़ाकर भोजन पचाने में सहायक होता है।
- पान में कृमि दुर करने का गुण हैं इसलिए उदर को विभिन्न रोगों से बचाता है।
- पान मुखवास में सुपारी तथा अन्य केमिकल रसायन का प्रयोग नहीं किया गया।
- यह पान मुखवास संपूर्ण सुरक्षित एवं स्वास्थ्य प्रद है।
Relevant Sastrokt Reference :
ताम्बूलमुक्तं तीक्ष्णोक्ष्णं रोचनं तुवरं सरम् तिक्तं क्षारोषणं कामरक्तपित्त करं लघु:॥
Ayurved Vidhan : BhavPrakash
Why To consume : For digesting food, to strengthen the digestive juices and gases and for mouth freshening.
Who Can Consume : Anyone
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