वैदिक गर्भ संस्कार
गर्भविज्ञान और गर्भसंस्कार क्या है ?
- गर्भविज्ञान अर्थात गर्भ संबंधित शास्त्रसिद्ध और अनुभवसिद्ध वेद-उपनिषद कथित सत्यों का ज्ञान ।
- गर्भसंस्कार अर्थात गर्भविज्ञान में कहे गए सत्यों का व्यवहारीकरण, अर्थात व्यवहार में उतारने की कला, गर्भविज्ञान को सिद्ध करती ऐसी क्रियाओं का समूह यानि गर्भसंस्कार, जिसमें आहार-विहारादि संस्कारों का समावेश होता है।
गर्भविज्ञान और गर्भसंस्कार की आवश्यकता क्या है ?
- गर्भ बालक का पहला घर है, पहला विद्यालय है, यदि भौतिक घर की ( मकान की ) योजना एक-दो वर्ष पहले करते है तो एसे जीव के घर की भी योजना करनी चाहिए ।

गर्भविज्ञान और गर्भसंस्कार का इतिहास
- गर्भविज्ञान – गर्भसंस्कार मनुष्य जाति जितने ही पुराने है वेद जो मनुष्य सभ्यता का प्रथम ज्ञान है, उसमें भी गर्भविज्ञान का उल्लेख है ।
- भारत में प्रत्येक शिशु का जन्म गर्भविज्ञान से होता था और गर्भसंस्कार से उनका संगोपन होता था, जिससे भारत को विश्वगुरु पद प्राप्त था, हजारों-लाखों ऋषि-मुनि, वैज्ञानिक, वैद्य भारत में तैयार होते थे ।
गर्भविज्ञान तथा पंचकोश विकास विज्ञान
- पंचकोश के विकास का विज्ञान तैत्तिरीय उपनिषद में बताया गया है । गर्भावस्था के प्रथम तीन मास में अन्नमय कोश का विकास, चौथे मास में प्राणमय कोश का विकास, पांचवे मास में मनोमय कोश का विकास, छठे मास में विज्ञानमय कोश का विकास तथा सात से नौवे मास के बीच आनंदमय कोश का विकास होता है, जिससे मनुष्य पूर्ण बनता है । इस प्रकार की जानकारी इस उपनिषद में दी गई है ।
गर्भविज्ञान/गर्भसंस्कार से शरीर-मन-आत्मा का विकास
- यह विज्ञान जब अति ऊँचाई पर था, तब भारतवर्ष में आत्मा का स्वास्थ्य भी समुन्नत था, परिणामस्वरूप कई ज्ञानी, विद्वान तैयार हुए थे ।
- मनःस्वास्थ्य की ऊँचाई के फलस्वरूप अनेक कलाकार, शिल्पकार, साहित्यकार भारत में तैयार हुए थे ।
- उसी प्रकार शारीरिक स्वास्थ्य के परिणाम स्वरूप लाखों लोगों में अंध-अपंग आदि अपवाद स्वरूप ही दिखते थे, जैसे रामायण में श्रवण के माता- पिता ही अंध थे, महाभारत में केवल धृतराष्ट्र ही अंध होने का उल्लेख है, विकलांगों की संख्या भी ५-७ की ही थी ।
- इस शारीरिक, मानसिक, आध्यात्मिक स्वास्थ्य का कारण गर्भविज्ञान / गर्भसंस्कार था ।
गर्भविज्ञान / गर्भसंस्कार का नाश
- मुगल तथा अंग्रेजों के आक्रमण से तथा उसके बाद भी हमारी उपेक्षा से इस महान विज्ञान का नाश हुआ, तथा इस विज्ञान के सूत्र लुप्तप्रायः हुए, भारत ऋषिप्रतिभाएँ लुप्त हुई, अनेकविध कलाओं का नाश हुआ ।
- स्वास्थ्य का स्तर तो बहुत ही गिर गया, जन्मांध, विकलांग बालकों की संख्या, निरंतर बढ़ती गई ।
- सन १९७२ में ५० लाख अंधजन और २५ लाख जन्मजात क्षतिग्रस्त थे । जो अति दुखदाई था ।
गर्भविज्ञान तथा गर्भसंस्कार के प्रकल्प का प्रारंभ
- इस परिस्थिति को देखकर पूज्य गुरुजी का अंतःकरण करुणा से भर गया, इस विकट परिस्थिति का कारण जानने के लिए वे अनेक अंध-आश्रम, हॉस्पिटल और संस्थाओं में गए, कारण यह सत्य स्वरूप में मिला कि गर्भविज्ञान तथा गर्भसंस्कार के अज्ञान के कारण आज स्वस्थ प्रजानिर्माण की व्यवस्था नष्ट हुई है तथा गर्भविज्ञान के सूत्र लुप्त होने से पशुवत संतति पैदा हो रही है ।
- १९७२ में पूज्य गुरुजी ने वेद, उपनिषद, गीता, महाभारत, आयुर्वेद आदि संहिताओं का गहन अध्ययन करके वैदिक गर्भसंस्कार के सूत्र प्राप्त किए, जो लुप्तप्रायः थे। इस प्रकार लुप्त हुए ज्ञान का पुनः उद्धार हुआ ।
- इन सूत्रों को एकत्र करके पूज्य विश्वनाथ गुरुजी ने संस्कृत भाषा में गर्भविज्ञान तथा गर्भसंस्कार के सूत्रों की रचना की । तदुपरांत ‘संस्कृति आर्य गुरुकुलम्’ द्वारा उसका प्रचार-प्रसार करके भेंट की जिससे दिव्य चेतनाओं का विभूतिओं का अवतरण हो सके ।
वैदिक गर्भविज्ञान तथा गर्भसंस्कार के विभाग
वैदिक गर्भविज्ञान-गर्भसंस्कार मुख्य तीन विभाग में है । जिसमें :-
१. गर्भ पूर्व में करने योग्य पुत्रेष्टि यज्ञ, नियम आदि ।
२. गर्भाधान के समय पर करने के लिए प्रार्थना, आह्वान विधि ।
३. गर्भावस्था में करणीय तीन संस्कार तथा अंत में शिशु जन्म पश्चात प्रसूता चर्या, कुमार चर्या ।
पुत्रेष्टि याग द्वारा चेतना जागरण
- वेद-उपनिषद कथित तथा रामायण-महाभारत में जिसका उल्लेख है, ऐसे पुत्रेष्टि याग जो उत्तम चेतना के अवतरण के लिए अद्भुत प्रयोग है ।
- यह यज्ञ वसंत ऋतु में विभिन्न वैदिक मंत्रों के साथ किया जाता है । एक दिवसीय यज्ञ तथा अन्य विविध विषय दूसरे दिन, ऐसे दो या तीन दिवसीय निवासी शिवीर का आयोजन होता रहता है ।
- पूज्य गुरुजी ने इस यज्ञ का सच्चा स्वरूप समझा कर दिव्य आत्मा अवतरण की विधि विस्तार से समझाई ।
दिव्य संतति हेतु गर्भाधान-विधि
- पूज्य गुरुवर्य ने गर्भाधान के समय तिथि, वार, नक्षत्र तथा मंत्र औषधियों का विस्तार से वर्णन समझाया। उसमें गर्भधारण में आने वाली विविध समस्याओं का निवारण मंत्र, ज्योतिष, औषधियों आदि से दिया ।
- गर्भाधान के समय तथा उससे पहले पुरुष की धातुशुद्धि तथा स्त्री की शुद्धि की प्रक्रिया में आहार-विहार, विचार तथा संस्कार का महत्व समझाया।
गर्भावस्था में आहार-विहार-विचार
- गर्भावस्था के प्रथम दिन से नौ महीने तक गर्भावस्था में क्या खाएं, क्या न खाएं ? विहार आदि का मार्गदर्शन दिया जाता है । केवल स्त्री-पुरुष (पति- पत्नी) नहीं परन्तु पूरे परिवार का Counseling (परामर्श) किया जाता है ।
- गर्भ के विकास के लिए परिवार का वातावरण योग्य रहे इसके लिए भी Counseling (परामर्श) किया जाता है ।
- गर्भावस्था दौरान कौन-कौन से ग्रंथ पढ़ने चाहिए, क्या-क्या प्रवृत्तियाँ करनी चाहिए ये सभी बातों की जानकारी एवं मार्गदर्शन, गर्भविज्ञान के पुस्तक, विडियों तथा विभिन्न औषधियों का सेवन कराया जाता है ।
- गर्भावस्था में गर्भस्राव / गर्भपात से रक्षण के लिए विभिन्न औषधियाँ तथा मंत्रोच्चार के उपाय भी बताए जाते है ।
गर्भ पूर्व गर्भावस्था एवं प्रसूति संबंधित औषधियाँ
- गर्भ पूर्व में शुक्र तथा रज की शुध्धि के लिए गर्भावस्था में गर्भ के पोषण-विकास के लिए तथा प्रसूति के बाद प्रसूता तथा शिशु के स्वास्थ्य के लिए विभिन्न औषधियों का निर्माण गुरुकुलम् के द्वारा पिछले ५० वर्षों से किया जाता है ।
- शिशुजन्म के बाद सुवर्णप्राशन संस्कार, निष्क्रमण संस्कार, अन्नप्राशन संस्कार, कर्णवेधन संस्कार, जैसे संस्कार गुरुकुलम् में निःशुल्क होते हैं।
- गर्भविज्ञान की बात बहुत से महापुरुषों ने बताई थी, परन्तु उसका प्रयोगीकरण और व्यवहारीकरण नहीं होता था । जिससे भारत में ज्ञानरूपी तैल हजारों किलो होने पर भी अँधेरा ही रहा । क्योंकि तैल होने पर भी बाती जलाने का, तैल भरने का प्रयास ही कोई नहीं करता है । अब यह भागीरथ कार्य ‘संस्कृति आर्य गुरुकुलम्’ द्वारा यथाशक्ति हो रहा है ।
गर्भश्रीमंत होने से गर्भसंस्कारी होना सौभाग्य की बात है…
- गर्भ की स्थिरता के बाद गर्भ के विकास के लिए विविध औषधियाँ, मंत्र, आहार-विहार तथा संस्कारों की पूर्ण जानकारी दी जाती है ।
- आयुर्वेद की संहिताओं में तथा वेद-उपनिषद जैसे ग्रंथों में गर्भावस्था में गर्भ रक्षा के लिए तीन संस्कारों का वर्णन किया गया है ।
गर्भावस्था में करने योग्य तीन संस्कार, उसका महत्व
१. पुंसवन संस्कार (१.५ से ३ माह तक ) :-
गर्भ के १.५ से ३ माह दौरान यह संस्कार किया जाता है । यह संस्कार प्राणप्रधान है, जिसमें विविध मंत्र तथा औषधियों के योग से गर्भ के श्रेष्ठत्व की प्रार्थना की जाती है । तथा नस्य भी किया जाता है ।
२. अनवलोभन संस्कार (३ से ५ माह तक ):-
अनवलोभन अर्थात् पतन से संरक्षण | गर्भपात से बचाने वाला संस्कार अनवलोभन संस्कार है । गर्भावस्था के चौथे महीने पर हृदय अभिव्यक्त होता है, इसलिए भावों में परिवर्तन आता है। गर्भघातक भावों को टालने एवं गर्भपोषक संवर्धक भावों को बढ़ाने के लिए यह संस्कार किया जाता है ।
३. सीमन्तोन्नयन संस्कार (५ से ७ माह तक ) :-
सीमन्त यानि पांच हड्डियों का जोड़ । उसका विकास ७ से ९ मास दौरान होता है। इस संस्कार के प्रभाव से (मज्जातंतू) बनने की प्रक्रिया सरलता से हो और मस्तिष्क मजबूत बने । यह संस्कार ओजप्रधान संस्कार कहा जाता है, क्योंकि सातवें मास के बाद ओज की अभिव्यक्ति होती है ।
ये तीनों संस्कार करवाने से बालक गर्भ से ही संस्कारी बनता है ।
भारत को पुनः संस्कारी बनाने का अभियान
- गर्भविज्ञान तथा गर्भ संस्कार का महत्व समझाने के लिए निःशुल्क शिविरों की व्यवस्थाएँ होती है । दिव्य आत्मा अवतरण हेतु पुत्रेष्टि यज्ञ भी करवाते हैं ।
- गर्भावस्था के तीनों संस्कार “संस्कृति आर्य गुरुकुलम्” में निःशुल्क करवाए जाते हैं । अन्य स्थान के निवासी के लिए भी ओनलाइन (इन्टरनेट) के माध्यम से निःशुल्क संस्कार की व्यवस्था है ।
“संस्कृति आर्य गुरुकुलम्” द्वारा संचालित इस संस्कार अभियान में सम्मिलित होकर आप भी उत्तम संतति निर्माण के सर्वश्रेष्ठ कार्य में भागीदार बने, यह संस्था का नम्र निवेदन है ।