गर्भविज्ञान – सेमिनार – (अभ्यास सत्र )
प्रत्येक नवदंपति या संतान–इच्छुक युगल को गर्भविज्ञान तथा गर्भाधान संस्कार के विषय में ज्ञान होना आवश्यक है। क्योकि उत्तम संतान को जन्म देनेवाले माता–पिता ही सही में न केवल राष्ट्र की अपितु समग्र विश्व की सेवा करते है।
मनुष्य जाति को उन्नत एवं प्रगत करने के लिए ऋषिओने जो प्रमुख १६ संस्कार बताये है उसमे सबसे महत्वपूर्ण एवं प्रथम संस्कार है – “गर्भाधान – संस्कार”।
वायुमंडल में स्थित पवित्र आन्दोलनको ग्रहण करके, देवताओं को आहवान करके, वर्जित दिन–तिथि को छोड़कर शुभ रात्रि के, शुभ योग में किया गया आद्य (प्रथम) संस्कार “गर्भाधान” पवित्र एवं दिव्य जीवों को दिया गया आमंत्रण है।
गर्भाधान से पूर्व स्त्री–पुरुष (पति–पत्नी) दोनोकी जीवनचर्या कैसी होनी चाहिए ?
गर्भावस्था के दौरान गर्भवती स्त्री की चर्या कैसी होनी चाहिए ?
एवं उसके साथ उसके परिवारजनों का व्यवहार कैसा होना चाहिए ?
प्रसूति पश्चात प्रसूताचर्या एवं नवजात शिशु का संगोपन कैसे होना चाहिए ?
इन सभी प्रश्नो पर हमारे ग्रंथो में विशद चर्चा की गयी है। गर्भ विज्ञान सेमिनारमें इन सभी संदर्भो के ऊपर चर्चा – चिंतन किये जाते है।
जैसे पशु, पक्षी, अन्न, औषधि आदि को उत्कृष्ट करने की एक विद्या है वैसे ही संतानो को उत्कृष्ट बनानेका यह शास्त्रोक्त विज्ञान है। उसके लिए यज्ञ, अनुष्ठान इत्यादि का भी बहोत महत्व माना गया है। इसका मार्गदर्शन भी हमारे सुज्ञ तथा अनुभवी वैद्य – चिकित्सको के द्वारा दिया जाता है।
गर्भ पूर्व थता गर्भ काल में लेने वाली औषधिओं के विषय में तथा आपातकालीन स्थिति में सद्य चिकित्सा हेतु कुछ विशेष औषधिओं के विषय पर तथा नित्य – नैमेत्तिक करणीय यज्ञ आदि कार्य के विषय में भी सम्पूर्ण मार्गदर्शन संतान – इच्छुक दम्पति को दिया जाता है।
पुत्र – संतान की आकांक्षा रखनेवाले युगलों को इसके विषय में भी मार्गदर्शन दिया जाता है, यद्यपि शास्त्रो में पुत्र – पुत्री संतान में कोई भेद-भाव, पक्षपात आदि नहीं है।
