अग्निहोत्र शब्द अग्नि और होत्र दो शब्दो से बना है। जिसका अर्थ होता है अग्नि में हव्य विभिन्न पदार्थों का विधिपूर्वक डालना प्रक्षेप करना। केवल अग्नि में किसी वस्तु को जलाना यह अग्निहोत्र नहीं कहलाता है परंतु यथाविधि विधि पूर्वक उसका होम आवश्यक है।

रघुवंश महाकाव्य में रघुवंशी राजाओं के विजय का रहस्य “यथा विधि हुताग्नि ना” ऐसा बताया है। भारतवर्ष में अग्निहोत्र की खोज हजारों साल पुरानी है। ऐसे अग्नि के महत्व को पूरे विश्व ने जाना है और इसलिए हि विश्व के विभिन्न संप्रदायों ने अग्नि की उपासना कि बात कही है जैसे पारसी लोगों में अग्नि पूजा होती है।

अग्निहोत्र में अग्नि में विभिन्न औषधियाँ, घी तथा धान्य आदि पदार्थों का हवन होता है।

विधि को सही में देखे तो इसके तीन भाग होते है। एक होता है अग्निहोत्र उसके बाद मंत्र और धूप तथा बचे पदार्थों का उपयोग। और उसके प्रभाव की बात करे तो यह चार पाय पर खड़ा है अग्नि, मंत्र, धूप और भस्म। यह चार पाए का उचित समय पर योग्य उपयोग समग्र ब्रह्मांड एवं वातावरण को प्रभावित करता है।

सबसे प्रथम अग्नि है– अग्नि गाय के कंडे पर जलानी होती है जिसको छोटा यज्ञ कहते। यज्ञ का शास्त्रीय एवं वैज्ञानिक दोनों महत्व है। यज्ञ गाय के गोबर के कंडे से ही अग्नि को जलाकर होता है। मॉडर्न साइंस के अनुसार डीकमार्डी हाइड नामक तत्व वातावरण में आता है और इससे वातावरण में अग्नि तत्व का प्रभाव बढ़ता है यानी एनर्जी बढती है। वातावरण में एनर्जी उत्पन्न होने से उसका सात्विक प्रभाव पड़ता है।

दूसरा है मंत्र– मंत्र विशिष्ट प्रकार की ध्वनि की तरंगे है। मंत्रो का असर केवल कॉन्शियस माइंड पर हि नहि अपितु सबकॉन्शियस माइंड एवम अनकॉन्शियस माइंड तथा चित पर भी होता है। मंत्र से वातावरण पवित्र होने से बच्चों का ऊर्जा का स्तर बढ़ जाता है और बच्चों के विकास में बहुत सहायक होता है।

अग्निहोत्र का तीसरा अंग है भस्म– अग्निहोत्र भस्म लगाने से या सेवन करने से बहुत लाभ होता है बहुत रोगों में औषधीय उपयोग के लिए भस्म अनिवार्य है। भस्म में एंटी बैक्टीरियल एवम एंटी वायरल प्रॉपर्टी पाई गई है।

चौथा है धूप– अग्निहोत्र के बाद जोभी बचता है उसमें विभिन्न औषधियों द्रव्य डालकर जो धूप निकलता है तो उसका औषधीय उपयोग है। धूपकल एवं अरोमाथेरेपी आज पूरे विश्व में प्रचलित है। कश्यप संहिता नामक आयुर्वेद के प्राचीनतम ग्रंथ मैं धूप का बहुत व महत्व बताया गया है। मॉडर्न साइंस और आयुर्वेद के ग्रंथों के आधार पर धूप-धुए के अणु परमाणु पार्टिकल्स बहुत सूक्ष्म होते हैं। धुँआ अपने शरीर के सुक्ष्म छिद्रों के द्वारा प्रवेश करता है और शरीर में बहुत लाभ होता है विभिन्न प्रकार की बीमारियों से बालकों के शरीर को बचाता है। विभिन्न औषधीय सुगंध से बालकों के मन में प्रसन्नता होती है इसलिए छोटे और बड़े सब के लिए धूप अति आवश्यक है।